भारत में रसोई की खुशबू और स्वाद की पहचान सरसों तेल से होती है। चाहे आलू की सब्जी हो या अचार का ज़ायका, हर घर में इसका इस्तेमाल पीढ़ियों से होता आया है। लेकिन हाल के दिनों में जब कभी बाजार में इसकी कीमत अचानक बढ़ जाती है, तो आम आदमी का बजट बिगड़ जाता है और किसान भी बेचैनी महसूस करते हैं। अब सरकार ने इस मुश्किल को आसान करने के लिए बड़ा कदम उठाने की तैयारी की है।
सरसों तेल की बदलती कीमतें
पिछले कुछ महीनों से सरसों तेल की कीमत कभी मौसम की मार, कभी कम पैदावार और कभी आयात-निर्यात नीति की वजह से बदल रही हैं। कई बार खुदरा बाजार में कीमत इतनी बढ़ जाती है कि उपभोक्ताओं को ज़रूरत भर का तेल लेना भी भारी पड़ जाता है। किसान भी शिकायत करते हैं कि मेहनत से उपजाई फसल का सही दाम नहीं मिल पाता। इस उतार-चढ़ाव ने घर से लेकर मंडियों तक सबको परेशान किया है।
सरकार का नया कदम
स्थिति को संभालने के लिए सरकार अब नया ऑर्डर लागू करने जा रही है। इसका मकसद है सरसों तेल की उपलब्धता बढ़ाना और कीमत को काबू में रखना। (सूत्रों के अनुसार इसमें स्टॉक सीमा पर नियंत्रण और मंडियों में पारदर्शिता जैसे प्रावधान शामिल हो सकते हैं)। सरकार चाहती है कि जमाखोरी और बिचौलियों की वजह से जो कृत्रिम महंगाई पैदा होती है, उस पर सख्त रोक लगाई जाए।
उपभोक्ताओं और किसानों पर असर
अगर यह नया आदेश सही तरीके से लागू होता है, तो आम लोगों को राहत मिलेगी। रसोई तक सस्ती दरों पर शुद्ध सरसों तेल पहुंचेगा। किसानों को भी अपनी पैदावार का उचित मूल्य तय समय पर मिलेगा, जिससे उनकी आय में सुधार होगा। कई बार देखा गया है कि जमाखोरी के चलते दाम अचानक ऊपर चले जाते हैं। सरकारी निगरानी से यह समस्या भी काफी हद तक कम हो सकती है।
आयात नीति और घरेलू उत्पादन
सरसों तेल का कारोबार केवल घरेलू पैदावार पर निर्भर नहीं करता। जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तिलहन और तेल महंगा होता है, तो उसका असर भारतीय उपभोक्ताओं तक सीधे पहुंचता है। इसलिए सरकार अब घरेलू उत्पादन बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है। किसानों को बेहतर बीज, तकनीक और समर्थन मूल्य (MSP) उपलब्ध कराया जा रहा है, ताकि आयात पर निर्भरता घटे और देश में स्थायी तौर पर भाव संतुलित रह सकें।
नई योजना से मिलने वाले फायदे
इस ऑर्डर और नीति सुधार से सबसे बड़ा फायदा होगा महंगाई पर नियंत्रण। लाखों परिवारों का बजट सरसों तेल की कीमत पर टिका होता है। अगर दाम स्थिर रहेंगे तो आम लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। किसानों को भी अपनी मेहनत का सही मूल्य मिलेगा, जिससे वे खेती में और सुधार कर पाएंगे। लंबे समय में इससे देश का उत्पादन भी बढ़ेगा और बाजार में संतुलन कायम रहेगा।